~!~ nanncian ~!~
Learning Angel
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| Subject: ऐ मेरे वतन के लोगो 26th January 2009, 16:48 | |
| ऐ मेरे वतन के लोगो, तुम खूब कमा लो दौलत दिन रात करो तुम मेहनत, मिले खूब शान और शौकत पर मत भूलो सीमा पार अपनो ने हैं दाम चुकाए कुछ याद उन्हे भी कर लो जिन्हे साथ न तुम ला पाए ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख मे भर लो पानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा कोई मदरासी सरहद पार करने वाला हर कोई है एक एन आर आई जिस माँ ने तुम को पाला वो माँ है हिन्दुस्तानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी जब बीमार हुई थी बच्ची या खतरे में पड़ी कमाई दर दर दुआएँ मांगी, घड़ी घड़ी की थी दुहाई मन्दिरों में गाए भजन जो सुने थे उनकी जबानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी उस काली रात अमावस जब देश में थी दीवाली वो देख रहे थे रस्ता लिए साथ दीए की थाली बुझ गये हैं सारे सपने रह गया है खारा पानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी न तो मिला तुम्हे वनवास ना ही हो तुम श्री राम मिली हैं सारी खुशियां मिले हैं ऐश-ओ-आराम फ़िर भला क्यूं उनको दशरथ की गति है पानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी सींचा हमारा जीवन सब अपना खून बहा के मजबूत किए ये कंधे सब अपना दाँव लगा के जब विदा समय आया तो कह गए कि सब करते हैं खुश रहना मेरे प्यारो अब हम तो दुआ करते हैं क्या माँ है वो दीवानी क्या बाप है वो अभिमानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी तुम भूल न जाओ उनको इसलिए कही ये कहानी जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी
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